- राम रक्षा स्त्रोत
प्रभु श्री राम से छत्तीसगढ़ का गहरा सम्बंध है। ऐसा माना जाता है कि अपने वनवास के 14 में से 10 वर्ष प्रभु राम ने दण्डकारण्य (वर्तमान छत्तीसगढ़) के जंगलों में बिताए थे।
वनवास के दौरान राम, लक्षमण, सीता की छत्तीसगढ़ वासियों से संवाद की अनेक कहानियां बतलाई जाती हैं। प्रभु राम से प्रेरित अनेक गीत, कहानियां हैं, जिन्हें मौखिक रूप से सुनाया , बतलाया जाता है ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी इसकी जानकारी हो सके। प्रभु राम से जुड़ी प्रसिद्धि, कहानियों से पता चलता है कि वनवास के दौरान छत्तीसगढ़ उत्साह मनाता है, जब युवराज राम ने मर्यादा पुरुषोत्तम होने के गुणों का परिचय दिया, जिससे पता चला कि वे एक आदर्श पुरुष व एक आदर्श राजा हैं।
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ प्रभु राम का ननिहाल है, क्योंकि प्रभु राम की माँ, माता कौशल्या का जन्म रामायण के अनुसार छत्तीसगढ़ में हुआ था। रिश्ते व शिक्षा की समझ जो माता कौशल्या ने प्रभु राम को दी, उसकी सराहना आज पूरा देश करता है।
छत्तीसगढ़ अपने अंदर अनेक कहानियां, अनेक विशेषताएं संजोये रखा हुआ है। जो इसे विशेष बनाते हैं हर उस राम भक्त के लिए जो अपने जीवन में प्रभु राम से जुड़े महत्वपूर्ण स्थानों पर जाना, उन्हें समझना, उन्हें अनुभव करना चाहता है।
यह एक मौका है ननिहाल वासी होने के नाते छत्तीसगढ़ की जनता के लिये, यह बतलाने का कि प्रभु राम पर, उनकी विरासत पर पहला हक़, अधिकार उनका है। इसी हक़, अधिकार की बात करता है मौजूदा सरकार का महत्वपूर्ण नारा, "बात है अभिमान की, छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान की"।
प्रभु राम के छत्तीसगढ़ से गहरे सम्बंध को सम्मान देते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने राम वन गमन प्रतिपथ के अंतर्गत छत्तीसगढ़ की उन सभी जगहों,स्थानों को चिन्हित किया है जहां प्रभु राम वनवास के दौरान ठहरे थे या गुज़रे थे। उत्तर से लेकर दक्षिण तक के उन सभी जगहों/स्थानों को चिन्हित कर सभी बड़े स्थानों से जोड़कर छत्तीसगढ़ सरकार एक पर्यटन परिपथ तैयार कर रही है।
प्रभु राम के सम्मान में ऐसा करने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है। हालांकि देश भर में अनेक तीर्थस्थल हैं , पर ऐसा कोई परिपथ कहीं नहीं है जहां अनेक स्थान हों जो प्रभु राम के जीवन से जुड़ी अनेक कहानियां बतलाएं, जहां आप प्रभु राम को अनुभव कर सकें।
इन सभी स्थानों पर अनेक पहल किये जा रहे हैं जिससे कि पर्यटक और श्रद्धालु सभी के लिए रहने, खाने जैसी व्यवस्थाएं हो सकें। जैसे कि:
इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के पहले चरण में 9 स्थानों को जहां से प्रभु राम ने जंगल का रास्ता चुना था को चिन्हित कर ₹137.45 करोड़ की लागत से पर्यटन स्थलों का विकास किया जा रहा है। सभी विकासकार्यों में रामायणकालीन विषयवस्तु को विशेष ध्यान में रखा गया है।
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार भगवान राम ने कोरिया जिले से छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया था। सीतामढ़ी-हरचौका उनके पहले पड़ाव के रूप में सुप्रसिद्ध है। मवई नदी के किनारे स्थित सीतामढ़ी-हरचौका की गुफा में 17 कमरे हैं। इस दिव्य स्थान को सीता की रसोई (हरचौका) के नाम से भी जाना जाता है। गुफा में 12 शिवलिंग स्थापित हैं। लोगों का मानना है कि गुफा में रहते हुए प्रभु श्री राम शिवलिंग की पूजा किया करते थे।
वनवास काल में भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के साथ घाघरा को छोड़, सरगुजा जिले में रामगढ़ की पहाड़ियों को पार करते हुए कोटाडोल पहुँचे थे। रामगढ़, सीता बेंगरा और जोगीमारा गुफाओं के लिए भी जाना जाता है। सरगुजा बोली में बेंगरा का मतलब कमरा होता है, यानी यह माता सीता का कमरा था। भगवान राम ने वनवास के कुछ दिन अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ इन गुफाओं में बिताए थे। इन गुफाओं से जुड़े किस्से पीढ़ियों से यहाँ के स्थानीय लोक कहानियों में गूँथी हुई हैं।
महाकवि कालिदास ने अपनी साहित्यिक कृति 'मेघदूतम' में इस स्थान के अप्रतिम दृश्यों का उल्लेख किया है। रामगढ़ इसलिए भी खास है क्योंकि यहाँ देश की सबसे पुरानी 'नाट्यशाला' (खुला मंच) है जहाँ महाकवि कालिदास ने ‘मेघदूतम’ की रचना की थी।
शिवरीनारायण छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले में - शिवनाथ, जोंक और महानदी- त्रिवेणी संगम (3 नदियों का मिलन स्थल) के तट पर बसा एक छोटा सा शहर है। शिवरीनारायण शब्द दो शब्दों के मेल से बना है- शबरी और नारायण। अद्भूत प्रेम, सादगी एवं मातृत्व की प्रतिमूर्ति माता शबरी इस शहर के कण-कण में रची-बसी हैं।
शिवरीनारायण मंदिर प्रांगण में एक विशाल प्राचीन बरगद का पेड़ है जिसके पत्तों का आकार बहुत ही अनूठा है। माना जाता है कि माता सीता को ढूँढते हुए भगवान राम जब शबरी के आश्रम में पहुँचे, तो उन्हें देख स्नेह एवं भक्ति के उत्साह में शबरी ने प्रभु श्री राम को बेर खिलाने की पेशकश की, तो वे बहुत खुश हुए। ये सुनिश्चित करने के लिए कि बेर मीठे हैं शबरी ने एक-एक करके सारे बेर चखे और मीठे बेर ही राम को खिलाए। शबरी और भगवान राम की कहानी प्रेम भक्ति की अप्रतिम दास्तान है जो आज भी सभी जगह सुनाई जाती है।
तुरतुरिया बलौदाबाजार जिले में बालमदेही नदी के तट पर स्थित एक छोटा सा गाँव है। माना जाता है कि यह महान महर्षि वाल्मीकि की पौराणिक भूमि है, जिनका आश्रम मंदिरों के निकट एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। यह भी मान्यता है कि यही वो पवित्र स्थान है जहाँ माता सीता ने अपने जुड़वां बच्चों - लव और कुश को जन्म दिया था। यह जगह अपने आप में एक महान धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व से परिपूर्ण है क्योंकि यहीं पर महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना कर संसार को भगवान राम की कथा से परिचित करवाया।
इस स्थल का नाम तुरतुरिया पड़ने का कारण यह है कि बलभद्री नाले का जलप्रवाह चट्टानों के माध्यम से होकर निकलता है तो उसमें से उठने वाले बुलबुलों के कारण तुरतुर की ध्वनि निकलती है। फिलहाल तुरतुरिया को एक पर्यटन तीर्थ के रूप में विकसित किया जा रहा है।
रायपुर के इस छोटे से गाँव -चंदखुरी का नाम, प्राचीन नगर चंद्रपुरी के नाम पर पड़ा है जिसपर पौराणिक काल में चंद्रवंशी राजाओं का शासन था। मान्यताओं के अनुसार चंदखुरी प्रभु श्रीराम का ननिहाल है क्योंकि यहीं पर उनकी माँ कौशल्या का जन्म हुआ था। इस स्थान पर माता कौशल्या को समर्पित एक प्राचीन कौशल्या माता मंदिर है जो दुनिया में अपनी तरह का एकमात्र मंदिर है।
राजिम गरियाबंद जिले का एक शहर है जो तीन नदियों- महानदी, सोंढूर एवं पैरी- के संगम स्थल के किनारे बहुत ही खास तरीके से स्थित है। हिन्दू परंपराओं के मान्याताओं के अनुसार तीन नदियों के मिलन को ‘त्रिवेणी संगम’ कहा जाता है तथा इसे शास्त्रों में पवित्र माना जाता है।
राम वन गमन पर्यटन परिपथ के तहत पहचाने जाने वाले इस स्थान को प्रचलित चलन में छत्तीसगढ़ का "प्रयाग" भी कहते हैं। राजिम, उन महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से है जहाँ भगवान राम ने अपने वनवास का कुछ समय ऋषि लोमश के आश्रम में बिताया था।
ऐसा माना जाता है कि माता सीता ने संगम में शिवलिंग की स्थापना करने के बाद भगवान राम और लक्ष्मण के साथ यहाँ भगवान शिव की पूजा की थी। उनके द्वारा स्थापित शिवलिंग अब प्रसिद्ध कुलेश्वर महादेव मंदिर के भीतर स्थित है। बाढ़ के समय मंदिर जलमग्न हो जाता है लेकिन शिवलिंग हमेशा ऊपर रहता है।
धमतरी जिले में सिहावा सात महान संतों के स्थान के रूप में प्रतिष्ठित है, जिनका नाम श्रृंगी ऋषि, मुचकुंद ऋषि, अगस्त्य ऋषि, अंगिरा ऋषि, कंकर ऋषि, शरभंग ऋषि और गौतम ऋषि हैं, जिनके आश्रम सात अलग-अलग पहाड़ियों पर स्थित हैं। लोककथाओं के अनुसार, भगवान राम ने अपना अधिकांश समय इस स्थान पर सभी सात ऋषियों से मिलने और परामर्श करने में बिताया था। सिहावा दिव्य महानदी नदी का उद्गम स्थल है, जिसे छत्तीसगढ़ और ओडिशा में पवित्र माना जाता है।
झरनों, गुफाओं, वन्य जीवन, मंदिरों एवं ऐतिहासिक स्मारकों से घिरा प्रसिद्ध स्थल जगदलपुर, बस्तर जिले का एक शहर है। राजघरानों के समय में यह बस्तर रियासत की राजधानी हुआ करता था।
जगदलपुर में मनाए जाने वाले कई अभूतपूर्व त्यौहारों में से एक है 'बस्तर दशहरा'। यह 500 साल पुराना त्यौहार है। यह त्यौहार साल में 75 दिन मनाया जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि प्रभु श्रीराम ने चित्रकोट और वर्तमान में कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित कुटुमसर क्षेत्र की गुफाओं में लंबा समय व्यतीत किया था जो जगदलपुर से 40 किलोमीटर दूर शानदार तीरथगढ़ झरनें के पास स्थित है।
दक्षिण बस्तर के स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय मान्यता है कि सुकमा जिले के रामाराम में भगवान राम के पैरों के निशान हैं। यह भी माना जाता है कि यहाँ उन्होंने पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करने वाली हिंदू देवी- भूमि देवी की पूजा की थी। यह स्थान चिटमिटीन अम्मा देवी के प्राचीन मंदिर के नाम से भी मशहूर है जिसके प्रांगण में स्थानीय आदिवासी समुदायों द्वारा एकसाथ रामनवमी का त्यौहार मनाया जाता है। मेले में आसपास के क्षेत्रों के विभिन्न आदिवासी समुदाय और पर्यटक भी शामिल होते हैं।